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पलकों की छाव मे

पलकों की छाव मे
नींद के गाव मे
रत भर हम
खाब खाब खेलते रहे

खाब कुछ अनकहे से थे
खाब कुछ अनसुने से थे
फुल्लो की तरह महके से खाब
रत भर महकते रहे

न जाने कहा से आये थे
न जाने कहा चले गए
फिर सब धुदला सा हो गया
हम जागते ,सोते रहे

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